قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لَسْتُمْ عَلٰى شَيْءٍ حَتّٰى تُقِيْمُوا التَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِيْلَ وَمَآ اُنْزِلَ اِلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ ۗوَلَيَزِيْدَنَّ كَثِيْرًا مِّنْهُمْ مَّآ اُنْزِلَ اِلَيْكَ مِنْ رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَّكُفْرًاۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكٰفِرِيْنَ ( المائدة: ٦٨ )
Qul ya ahla alkitabi lastum 'ala shayin hatta tuqeemoo alttawrata waalinjeela wama onzila ilaykum min rabbikum walayazeedanna katheeran minhum ma onzila ilayka min rabbika tughyanan wakufran fala tasa 'ala alqawmi alkafireena (al-Māʾidah 5:68)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
कह दो, ॅ'ऐ किताबवालो! तुम किसी भी चीज़ पर नहीं हो, जब तक कि तौरात और इनजील को और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उसे क़ायम न रखो।' किन्तु (ऐ नबी!) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर जो कुछ अवतरित हुआ है, वह अवश्य ही उनमें से बहुतों की सरकशी और इनकार में अभिवृद्धि करनेवाला है। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना
English Sahih:
Say, "O People of the Scripture, you are [standing] on nothing until you uphold [the law of] the Torah, the Gospel, and what has been revealed to you from your Lord [i.e., the Quran]." And that which has been revealed to you from your Lord will surely increase many of them in transgression and disbelief. So do not grieve over the disbelieving people. ([5] Al-Ma'idah : 68)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब जब तक तुम तौरेत और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल हुए हैं उनके (एहकाम) को क़ायम न रखोगे उस वक्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं और (ऐ रसूल) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से भेजी गयी है (उसका) रश्क (हसद) उनमें से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा तुम काफ़िरों के गिरोह पर अफ़सोस न करना