وَاِذْ قِيْلَ لَهُمُ اسْكُنُوْا هٰذِهِ الْقَرْيَةَ وَكُلُوْا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ وَقُوْلُوْا حِطَّةٌ وَّادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا نَّغْفِرْ لَكُمْ خَطِيْۤـٰٔتِكُمْۗ سَنَزِيْدُ الْمُحْسِنِيْنَ ( الأعراف: ١٦١ )
Waith qeela lahumu oskunoo hathihi alqaryata wakuloo minha haythu shitum waqooloo hittatun waodkhuloo albaba sujjadan naghfir lakum khateeatikum sanazeedu almuhsineena (al-ʾAʿrāf 7:161)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
याद करो जब उनसे कहा गया, 'इस बस्ती में रहो-बसो और इसमें जहाँ से चाहो खाओ और कहो - हित्ततुन। और द्वार में सजदा करते हुए प्रवेश करो। हम तुम्हारी ख़ताओं को क्षमा कर देंगे और हम सुकर्मी लोगों को अधिक भी देंगे।'
English Sahih:
And [mention, O Muhammad], when it was said to them, "Dwell in this city [i.e., Jerusalem] and eat from it wherever you will and say, 'Relieve us of our burdens [i.e., sins],' and enter the gate bowing humbly; We will [then] forgive you your sins. We will increase the doers of good [in goodness and reward]." ([7] Al-A'raf : 161)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जब उनसे कहा गया कि उस गाँव में जाकर रहो सहो और उसके मेवों से जहाँ तुम्हारा जी चाहे (शौक़ से) खाओ (पियो) और मुँह से हुतमा कहते और सजदा करते हुए दरवाजे में दाखिल हो तो हम तुम्हारी ख़ताए बख्श देगें और नेकी करने वालों को हम कुछ ज्यादा ही देगें