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وَمَنْ يَّعْشُ عَنْ ذِكْرِ الرَّحْمٰنِ نُقَيِّضْ لَهٗ شَيْطٰنًا فَهُوَ لَهٗ قَرِيْنٌ   ( الزخرف: ٣٦ )

And whoever
وَمَن
और जो
turns away
يَعْشُ
अंधा बन जाए
from
عَن
ज़िक्र से
(the) remembrance
ذِكْرِ
ज़िक्र से
(of) the Most Gracious
ٱلرَّحْمَٰنِ
रहमान के
We appoint
نُقَيِّضْ
हम मुक़र्रर कर देते हैं
for him
لَهُۥ
उसके लिए
a devil
شَيْطَٰنًا
एक शैतान
then he
فَهُوَ
तो वो
(is) to him
لَهُۥ
उसका
a companion
قَرِينٌ
साथी हो जाता है

Waman ya'shu 'an thikri alrrahmani nuqayyid lahu shaytanan fahuwa lahu qareenun (az-Zukhruf 43:36)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

जो रहमान के स्मरण की ओर से अंधा बना रहा है, हम उसपर एक शैतान नियुक्त कर देते है तो वही उसका साथी होता है

English Sahih:

And whoever is blinded from remembrance of the Most Merciful – We appoint for him a devil, and he is to him a companion. ([43] Az-Zukhruf : 36)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जो शख़्श ख़ुदा की चाह से अन्धा बनता है हम (गोया ख़ुद) उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका (हर दम का) साथी है